रमेश जौरा द्वारा
बॉन (आईडीएन) – दुनिया के 48 सबसे गरीब और जलवायु परिवर्तन के संबंध में सबसे संवेदनशील देश इस बात को ले कर खासे चिंतित हैं कि क्या आने वाले महीनों में 2015 में पेरिस में हुए जलवायु परिवर्तन समझौते के सभी पहलुओं को लागू किया जाएगा।
इस बात को सर्वाधिक अविकसित देशों के समूह (एलडीसी) के अध्यक्ष, इथियोपिया के गेब्रू जेम्बर एन्दलेव ने बॉन में दो सप्ताह की संयुक्त राष्ट्र जलवायु वार्ता के अंतिम दिन 18 मई को जोर दे कर कहा। इस वार्ता में 140 देशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया।
एलडीसी उन देशों का समूह है जिन्हें संयुक्त राष्ट्र ने उनकी न्यून सकल राष्ट्रीय आय, कमज़ोर मानवीय संसाधन और अत्यधिक आर्थिक असुरक्षा के आधार पर “सर्वाधिक अविकसित” देशों के रूप में वर्गीकृत किया हुआ है।
एन्दलेव ने मीडिया रिलीज़ में कहा “एलडीसी खुश हैं कि इस सम्मेलन के दौरान कुछ महत्वपूर्ण प्रगति हुई लेकिन फिर भी हम उस गति से आगे नहीं बढ़ रहे जिस से बढ़ना चाहिए।””इस नवम्बर में सीओपी23 में हमें ‘नियम पुस्तिका’ को अंतिम रूप देने की दिशा में काफी प्रगति करनी चाहिए। यह नियम पुस्तिका बिना अंतिम पल की भागम-भाग के पेरिस समझौते को लागू करने में सहायता करेगी।”
सीओपी 23, जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (यूएनएफसीसीसी) का 23वां अधिवेशन है जो 6 से 17 नवम्बर तक बॉन, जो 1990 में दो जर्मन राज्यों के एकीकरण तक युद्ध के बाद के पश्चिम जर्मनी की राजधानी रहा था, में होना प्रस्तावित है। शहर में करीब 20 संयुक्त राष्ट्र एजेंसियां और सचिवालय हैं।
एन्दलेव ने चेतावनी दी कि पेरिस जलवायु समझौते को साकार करने में महत्वपूर्ण प्रगति अनिवार्य है क्योंकि जलवायु परिवर्तन के प्रभाव पहले से ही दुनिया के सभी कोनों में असर डाल रहे हैं, और आने वाले कुछ दशकों में इनके काफी हद तक बढ़ने की उम्मीद है।
उन्होंने कहा, “हम जितनी अधिक प्रतीक्षा करेंगे हमारे लिए अनुकूलन, हानि और क्षति उतना ही अधिक महंगी पड़ेगी। हम अपने गरीबी उन्मूलन के प्रयासों और हमारे सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में भी जोखिम उठाएंगे।”
एलडीसी इस बात से वास्तव में चिंतित हैं कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय अब भी विकासशील देशों की वास्तविक वित्तीय आवश्यकताओं की ओर ध्यान नहीं दे रहा है, जिनके राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान के अनुसार “अरबों नहीं खरबों” की आवश्यकता है। एलडीसी अध्यक्ष ने कहा, कि एलडीसी और अन्य विकासशील देशों के लिए पेरिस समझौते को लागू करने के लिए जलवायु वित्त जुटाना महत्वपूर्ण है।”
इस पृष्ठभूमि में एन्दलेव ने इस बात पर जोर दिया कि जलवायु परिवर्तन पर वैश्विक प्रतिक्रिया सर्वश्रेष्ठ उपलब्ध विज्ञान और तकनीकी के साथ संगत होनी चाहिए। “जीवन और आजीविका की रक्षा के लिए हमें तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेंटीग्रेड तक सीमित रखना होगा, जिसका अर्थ 2020 में वैश्विक उत्सर्जन का सर्वोच्च स्तर है।उत्सर्जन के वक्र को नीचे की ओर लाने के लिए हमारे पास तीन वर्ष से कम समय है।”
इस बात को ध्यान में रखते हुए, एलडीसी सभी दलों का आह्वान कर रहे हैं कि वे जलवायु परिवर्तन की दिशा में अपने प्रयासों को दुगना कर दें।” एक कदम आगे जा कर वे चेतावनी दे रहे हैं कि “वर्तमान और भविष्य की पीढ़ियों की आजीविका तराज़ू में लटक रही है और इस बात पर निर्भर है कि सभी देश उचित और महत्वाकांक्षी कार्यवाही करें।”
मई अधिवेशन की समाप्ति पर फिजी के प्रधान मंत्री फ्रैंक बैनिमाराम, जो नवम्बर अधिवेशन के अध्यक्ष होंगे, ने 2020 से पहले और बाद में जलवायु परिवर्तन के लिए की जाने वाली कार्यवाही को गति देने के लिए सिविल सोसाइटी, वैज्ञानिक समुदाय, निजी क्षेत्र और शहरों और क्षेत्रों सहित सरकार के सभी स्तरों के बीच एक महागठबंधन बनाने की वकालत की।
बैनिमारामा की प्राथमिकताओं में हैं: “जलवायु परिवर्तन के प्रभावों जिनमें ख़राब मौसम और समुद्र का बढ़ता स्तर शामिल है, से निपटने के लिए कमजोर देशों के लिए अधिक असरदार समाधान तैयार करना और जलवायु अनुकूलन वित्त, नवीकरणीय ऊर्जा, स्वच्छ पानी और सस्ती जलवायु जोखिम और आपदा बीमा तक पहुंच बढ़ाना और टिकाऊ कृषि को बढ़ावा देना।”
फिजी का द्वीप जो 79 देशों से संबंधित है जिनमें अफ्रीकी, कैरेबियन और प्रशांत समूह (एसीपी) समूह शामिल हैं। ये सभी देश मिल कर पेरिस समझौते के आधे से अधिक हस्ताक्षरकर्ता हैं।एसीपी ग्रुप के लगभग 40 राज्य एलडीसी हैं।
अमेरिका द्वारा अपने जलवायु परिवर्तन दृष्टिकोण की समीक्षा के मद्देनज़र अनिश्चितता के बावजूद, एसीपी ग्रुप और यूरोपीय संघ ने समझौते को पूर्णतः लागू करने के लिए अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि की है और साथ ही सभी भागीदारों से 2015 में बनी गति को बनाए रखने की अपील की है।
एसीपी समूह और यूरोपीय संघ ने पेरिस समझौते को लागू करने के लिए अगले चरणों पर सहमति जताई है और साथ ही कम उत्सर्जन, जलवायु संबंधी विकास को बढ़ावा देने के लिए सहयोग को मजबूत करने के लिए सहमति जताई है।
इस बढ़े हुए सहयोग के एक उदाहरण के रूप में, यूरोपीय संघ (ईयू) ने 2020 तक प्रशांत क्षेत्र के लिए 800 मिलियन यूरो की सहायता की घोषणा की है जिसमें से लगभग आधा जलवायु परिवर्तन पर कार्यवाही के लिए निर्धारित किया गया है। ईयू फिजी की सीओपी 23 प्रेसीडेंसी के समर्थन के लिए भी 3 मिलियन यूरो प्रदान करेगा।
जलवायु कार्यवाही और ऊर्जा के लिए यूरोपीय आयुक्त मिगुएल एरियस कैनेटे ने कहा: “आज पहले से कहीं ज्यादा, यूरोप अपने उन दीर्घकालीन साझेदारों के साथ खड़ा है जो जलवायु परिवर्तन के मद्देनज़र सबसे कमजोर हैं। हम विकसित और विकासशील देश मिल कर पेरिस समझौते का बचाव करेंगे। हम सभी साथ हैं और इस समझौते के लिए हमारी संयुक्त प्रतिबद्धता वही है जो पेरिस में थी: अपरिवर्तनीय और गैर-परक्राम्य।”
ब्रसेल्स के एसीपी सचिवालय ने अपने महासचिव पैट्रिक गोम्स का हवाला देते हुए कहा : “एसीपी समूह और यूरोपीय संघ के बीच लंबे समय से चल रहे सहयोग से पता चलता है कि हम जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को दूर करने के बारे में गंभीर हैं।पेरिस समझौते को कार्यान्वित करना न केवल 79 एसीपी देशों के अस्तित्व को सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है, अपितु दुनिया भर में स्थायी, लचीली और समृद्ध अर्थव्यवस्थाओं और समाजों के निर्माण के लिए भी आवश्यक है। “
बॉन में एसीपी समूह और यूरोपीय संघ ने 2018 तक पेरिस समझौते के क्रियान्वयन कार्यक्रम को अंतिम रूप देने की आवश्यकता पर जोर दिया।यह इस बात को सुनिश्चित करने की दिशा में महत्वपूर्ण होगा कि सभी देश वैश्विक लक्ष्यों में योगदान देने के लिए अपनी राष्ट्रीय जलवायु योजनाओं को तेजी से क्रियान्वित करें। उन्होंने अगले साल होने वाली सुविधाजनक वार्ता के लिए विस्तृत तैयारी करने के महत्व को भी रेखांकित किया।
यह बातचीत सभी दलों के योगदानों और सामूहिक प्रगति के साथ-साथ उन समाधानों की जांच करने के लिए साझा की गई समझदारी को स्थापित करने की दिशा में महत्वपूर्ण होगी, जो हमें हमारे सामूहिक लक्ष्य को प्राप्त करने में सहायक होगी।
एसीपी देशों और यूरोपीय संघ ने जाने वाली मोरक्को की प्रेसीडेंसी और आने वाली फिजी की प्रेसीडेंसी द्वारा आयोजित विचार विमर्श को भी अपना समर्थन दिया। इन वार्ताओं का उद्देश 2018 में सीओपी 23 शिखर सम्मेलन की सुविधावादी वार्ता के डिजाइन पर एक स्पष्ट प्रस्ताव विकसित करना भी है। [IDN-InDepthNews – 21 मई 2017]
फोटो: फुनाफुटी एटोल पर एक समुद्र तट, तुवालु, पर एक खिले हुए दिन। क्रेडिट: विकिपीडिया कॉमन्स।
आईडीएन इंटरनेशनल प्रेस सिंडिकेट की प्रमुख एजेंसी है।
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